
किसानों का कहना है कि सरकार को किसानो के बारे में सोचना चाहिए। वो कहते है देहरादून कभी लीची की खेती के लिए जाना जाता था। जिससे कई किसानो की रोजी चलती थी। लेकिन समय के साथ लीची के बाग खत्म हो रहे हैं। अब शहर में दूसरें प्रदेशों से लीची मंगा कर बेचा जा रहा है। वही उनका कहना है कि मंडियों में आढ़ती समय पर उन्हें फसलो का भुगतान नहीं करते है। अपने पैसों के उन्हें महीनों चक्कर कॉटने पड़ते है। तभी किसानों का कहना है कि पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों के लिए कृषि उपकरणों पर एक समान सब्सिड़ी, किसानों के उत्थान के लिए समय-समय पर योजनाएं चलाई जानी चाहिए। जब दिल्ली जैसे प्रदेश में 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली दी जा रही है, तो उत्तराखंड में ऊर्जा प्रदेश होने के बाद भी यह व्यवस्था क्यों नहीं है।
पहाड़ और मैदान में किसानों को उपकरणों में अलग- अलग सब्सिड़ी मिल रही है। देहरादून, उधमसिंहनगर और हरिद्वार के किसानों को कृषि उपकरण महंगे दामों पर मिलते है। किसानों की कुछ यह भी शिकायते है कि जंगली जानवर फसलों को खराब कर देते हैं वन विभाग भी कुछ नहीं कर पाता। वहीम फसलो का सही दाम नहीं मिलता, अलग-अलग दाम होने से किसानों को नुकसान होता है। इसमें केवल आढ़तियों को ही मुनाफा होता है।