
उत्तरकाशी के धराली में 5 अगस्त को आई भीषण आपदा ने एक शहीद के परिवार का वर्षों पुराना सपना पलभर में उजाड़ दिया। डुंडा ब्लॉक के मालना गांव निवासी मनोज भंडारी के पिता राजेंद्र मोहन भंडारी आईटीबीपी में सिपाही थे और 9 मई 1991 को पंजाब में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। उस समय मनोज ढाई साल के और मां कुसुम लता भंडारी मात्र 21 साल की थीं। पति की शहादत के बाद मां ने संघर्ष करते हुए बेटे को पढ़ाया-लिखाया और बेहतर भविष्य के सपने संजोए।
2011 में मनोज आईटीबीपी में उप निरीक्षक फार्मासिस्ट बने और मध्य प्रदेश, मातली व लद्दाख में सेवाएं दीं। 2020 में उन्होंने बीआरएस लेकर उत्तरकाशी लौटने का निर्णय लिया, ताकि मां और परिवार के साथ रह सकें। उन्होंने पहले मेडिकल व्यवसाय शुरू किया, फिर स्वरोजगार और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से रिसॉर्ट बनाने का सपना देखा। 2024 में मां की पेंशन के एवज में बैंक से 50 लाख रुपये का ऋण लेकर धराली में कल्प केदार मंदिर के नीचे सेब के बागानों के बीच 14 कमरों का रिसॉर्ट बनाया। यहां सात लोग कार्यरत थे।
5 अगस्त को खीर गंगा में आए सैलाब के समय रिसॉर्ट में केवल तीन लोग मौजूद थे, जो सुरक्षित निकलने में सफल रहे, लेकिन रिसॉर्ट चंद मिनटों में मलबे में बदल गया। मनोज ने बताया कि उन्होंने पिता का चेहरा कभी ठीक से नहीं देखा, केवल तस्वीरों में पहचाना। इस आपदा के बाद उनकी स्थिति वैसी ही हो गई जैसी 1991 में पिता के शहीद होने पर थी।
आज उनके सामने न केवल आर्थिक संकट खड़ा है, बल्कि वर्षों की मेहनत और सपनों का भविष्य भी अनिश्चित हो गया है। परिवार अब सरकार की ओर उम्मीद लगाए बैठा है कि प्रभावितों के पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाए जाएं, ताकि वे फिर से अपने जीवन को संवार सकें। धराली आपदा ने यह साबित कर दिया कि प्रकृति का प्रकोप इंसानी सपनों को पलक झपकते मिटा सकता है।