Pirul Rakhi-उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में चीड़ के पत्तों से कमाल किया जा रहा है, यहां पर महिलाएं इनसे स्पेशल राखी बना रही हैं जिनकी डिमांड पूरे देश में हो रही है. सिर्फ इतना ही नहीं बड़े-बड़े कलाकार भी इसे अपना रहे हैं. राखी का त्योहार खास होता है, खास इसलिए क्यूंकि एक धागा भाई बहन के रिश्ते की पवित्रता को ऊंचाई तक पहुंचाता है. लेकिन उस राखी के धागे के बनने की भी अपनी कहानियां होती हैं, क्यूंकि ये धागा कुछ लोगों की ज़िंदगी भी संवारता है और प्रकृति को राहत भी देता है. ऐसी ही एक कहानी उत्तराखंड से भी जुड़ी है, जहां चीड़ के पत्तों से कुछ ऐसा कमाल किया जा रहा है जो ना सिर्फ कुछ चेहरों पर मुस्कान ला रहा है, बल्कि एक विरासत को भी समेट रहा है।
Pirul Rakhi-उत्तराखण्ड में चीड़ के पत्तों को पिरूल कहते हैं
Pirul Rakhi- चीड़ के पेड़ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में पाए जाते हैं और इन का उपयोग विदेश में कई प्रकार से किया जाता है. धीरे-धीरे भारत भी चीड़ के महत्व से परिचित हो रहा है और इस अभिशाप को एक वरदान के रूप में देखा जाने लगा है. उत्तराखंड के कई हस्तशिल्पकार चीड़ के पत्तों से आभूषण और रोज़मर्रा की वस्तुएं जैसे टोकरी और सजावट के सामान बना रहे हैं और इनकी मांग देश विदेश में बहुत ज़्यादा है. अब तो चीड़ के पत्तों से ग्रीन टी, इसकी छाल से कई हस्तशिल्प और यहाँ तक कि कुकीज भी बनाए जा सकते हैं.
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में हमारा गांव घर फाउंडेशन भी ऐसा ही एक कमाल कर रहा है. इस फाउंडेशन के सहयोग की बदौलत ही कई महिलाएं पिरूल हस्तशिल्प की कला को आगे बढ़ा रही हैं. पुस्तकालय गांव की महिलाएं इसी पिरूल से राखियाँ बना रही हैं. ये राखियाँ देखने में तो सुन्दर हैं ही साथ ही प्रकृति के साथ जुड़े रहने का एहसास भी करवाती हैं.
इन राखियों को हमारा गाँव घर फाउंडेशन आप तक पहुंचा रहा है. पिछले साल भी पुस्तकालय गाँव की महिलाओं ने पिरूल की राखियां बनाई थीं जिन्हें देश भर में पसंद किया गया था. इस साल भी ये राखियाँ कई जाने माने कलाकारों, शिक्षाविदों और फ़िल्मकारों तक पहुँच रही हैं.