
सम्पूर्ण भारत वर्ष में नवरात्रि का त्यौहार बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के अलग-अलग रूपों की उपासना की जाती है। माँ दुर्गा के भक्त माता रानी को प्रसन्न करने के लिए विधि-विधान के साथ व्रत भी रखते हैं। एक वर्ष में नवरात्रि का त्यौहार चार बार आता है। जिसमें दो नवरात्रियों को गुप्त नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। जबकि बाकी दो नवरात्रि को चैत्र और शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। आज के इस लेख में हम यह बताएंगे कि चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में मुख्य अंतर क्या हैं?
दरअसल चैत्र नवरात्रि, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। यह नवरात्रि ज्यादातर उत्तरी और पश्चिमी भारत में धूम-धाम से मनाई जाती है। इसके अलावा लूनी-सोलर कैलेंडर के अनुसार, यह त्यौहार हिंदू नववर्ष की शुरुआत में भी मनाया जाता है। वहीं मराठी लोग इसे ‘गुड़ी पड़वा’ और कश्मीरी हिंदू इसे ‘नवरे’ के रूप में मनाते हैं। इतना ही नहीं, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में हिंदू इसे ‘उगादी’ नाम से भी मनाते हैं।
चैत्र नवरात्रि
चैत्र नवरात्रि से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन ही आदि शक्ति पृथ्वी पर प्रकट हुईं थीं और ब्रह्मा जी से सृष्टि की रचना के लिए कहा था। नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर पृथ्वी की रचना की थी। इसके अलावा चैत्र नवरात्रि की नवमी को श्रीराम का जन्म हुआ था, जिसे हम रामनवमी के नाम से भी जानते हैं और यही कारण है कि नौ दिन चलने वाले इस त्यौहार को ‘रामनवमी’ भी कहते हैं। जिसका समापन भगवान राम के जन्मदिन ‘रामनवमी’ वाले दिन होता है। ऐसे में धार्मिक दृष्टि से चैत्र नवरात्रि का हिंदू धर्म में बहुत बड़ा महत्व है।
शारदीय नवरात्रि
वहीं अगर हम बात करें शारदीय नवरात्रि की, तो शारदीय नवरात्रि हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल शरद ऋतु में अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होती हैं। इस नवरात्रि को उत्सव की तरह मनाने के पीछे दो प्रमुख पौराणिक कथा बेहद प्रचलित हैं। पहली पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नाम का एक राक्षस था जिसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके वरदान मांगा कि दुनिया में कोई भी देव, दानव या धरती पर रहने वाला कोई भी मनुष्य उसका वध न कर पाए। ब्रह्माजी से आशीर्वाद प्राप्त कर महिषासुर आतंक मचाने लगा।जिसके आतंक से त्रस्त होकर शक्ति के रूप में माँ दुर्गा का जन्म हुआ। माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक घमासान युद्ध चला और दसवें दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया।
वहीं दूसरी कथा के अनुसार, जब भगवान राम लंका पर आक्रमण करने जा रहे थे तो उससे पहले उन्होंने माँ भगवती की अराधना की और भगवान राम ने नौ दिनों तक रामेश्वर में माँ का पूजन किया था। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उन्हें जीत का आर्शीवाद दिया। उसके बाद दसवें दिन राम जी ने रावण को हराकर लंका पर विजय प्राप्त की थी। तभी से दशमी के दिन विजयदशमी का त्यौहार मनाया जाता है।
अगर चैत्र और शारदीय नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की बात करें तो माता रानी की पूजा अर्चना दोनों ही नवरात्रि में माँ को प्रसन्न करने के लिए एक ही तरीके से की जाती है। इसमें भक्तगण व्रत, कन्या पूजन और हवन करके माँ के नौ दिन नौ स्वरूपों की भक्ति भाव से पूजा अर्चना करते हैं। कहा जाता है कि नवरात्रि के पावन मौके पर सच्चे मन से की गई पूजा का फल माता रानी अपने भक्तों को अवश्य प्रदान करती हैं।