गैरसैंण में बनने वाले उत्तराखंड भाषा संस्थान के मुख्यालय के लिए विभाग को देहरादून में भी जमीन नहीं मिल रही है। विभाग की निदेशक स्वाति भदौरिया के मुताबिक भाषा संस्थान के मुख्यालय के लिए सहस्त्रधारा रोड में करीब दो एकड़ जमीन चिन्हित की गई, लेकिन अब इस पर आपत्ति आ गई है। जिला प्रशासन को कहा गया है कि नियम के तहत यदि यह जमीन नहीं मिल सकती तो किसी अन्य स्थान पर संस्थान के मुख्यालय के लिए जमीन दी जाए।
उत्तराखंड की बोली भाषा को बढ़ावा देने के लिए 24 फरवरी वर्ष 2009 को भाषा संस्थान की स्थापना की गई, लेकिन तब से भाषा संस्थान का अपना मुख्यालय भवन नहीं है। जो शुरू से ही किराये के भवन में चल रहा है। छह अक्तूबर 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में इसके मुख्यालय की स्थापना की घोषणा की थी।
संस्थान के लिए भूमि खरीदने के लिए 50 लाख की व्यवस्था भी की गई, लेकिन सीएम की घोषणा के बावजूद संस्थान का मुख्यालय पहाड़ में नहीं बन पाया। पूर्व विभागीय मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद इसे गैरसैंण के स्थान पर हरिद्वार में बनाना चाहते थे। जबकि विभागीय मंत्री सुबोध उनियाल इसका मुख्यालय देहरादून में बनाने की तैयारी में हैं। इसके लिए पिछले दिनों सहस्त्रधारा रोड में जमीन चिन्हित की गई थी। जिला प्रशासन को संस्थान के मुख्यालय के लिए जमीन भाषा संस्थान को हस्तांतरित करनी थी, लेकिन अब इसमें अड़चन आ गई है। विभाग की निदेशक के मुताबिक यह भूमि पठाल वाली भूमि है। बताया गया है नियम के तहत इसे भाषा संस्थान को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता।
पहाड़ और मैदान के बीच लटका भाषा संस्थान
उत्तराखंड भाषा संस्थान पहाड़ और मैदान की राजनीति में लटक गया है। कुछ लोग इसे पहाड़ में बनाना चाहते हैं। उनका कहना है कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया है। इसके बाद वहां विभिन्न संस्थानों की स्थापना की प्रक्रिया शुरू होगी। गैरसैंण में उत्तराखंड भाषा संस्थान की स्थापना की घोषणा इसी दिशा में बढ़ाया गया कदम है, लेकिन कुछ का कहना है कि पहाड़ में जाने को कोई तैयार नहीं है। यदि संस्थान का मुख्यालय गैरसैंण में बनाया गया तो यह कुछ समय बाद खंडहर में तब्दील हो जाएगा।
अपनी बोली भाषा को नहीं मिल पाया बढ़ावा
गढ़वाली, कुमाऊंनी भाषा एवं साहित्य पर कई विश्वविद्यालयों में पीएचडी शोध ग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वर्ष 1913 में गढ़वाली भाषा का प्रथम समाचार पत्र गढ़वाली समाचार प्रकाशित हुआ। इसके अलावा भी इसकी कई साहित्यिक पृष्ठभूमि है, लेकिन राज्य गठन के 24 साल बाद भी अपनी बोली-भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं हुए।