नई दिल्ली: लोकसभा में हरिद्वार सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने हिमालयी और पर्वतीय क्षेत्रों की पारंपरिक फसलों के तेजी से विलुप्त होने को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, प्रवासन और वाणिज्यिक खेती के कारण कई पारंपरिक फसलें अब संकटग्रस्त हैं।
रावत ने केंद्र सरकार से इन फसलों के संरक्षण, पुनर्जीवन और बाजार से जोड़ने संबंधी राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी नीति और ठोस कदमों की जानकारी मांगी। उन्होंने पूछा कि क्या सरकार को पता है कि कई पर्वतीय फसलें विलुप्ति के कगार पर हैं, आईसीएआर और नेशनल जीन बैंक ने उनके संरक्षण और पुनर्प्रचलन के लिए क्या कदम उठाए हैं….और क्या पोषक तत्वों से भरपूर “विलुप्त प्राय” फसलों के संवर्धन के लिए कोई विशेष कार्यक्रम प्रस्तावित है।
केंद्र की पहल और संरक्षण प्रयास
कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने लिखित उत्तर में बताया कि आईसीएआर और नेशनल जीन बैंक ने 1,00,086 विलुप्त या संकटग्रस्त किस्मों का संरक्षण, दस्तावेजीकरण और पुनर्प्रचलन किया है। इनमें 85,587 भू-प्रजातियाँ और 14,499 पारंपरिक कृषक किस्में शामिल हैं।
मंत्री ने आगे कहा कि सरकार पोषक तत्वों से भरपूर मिलेट, छद्म-अनाज और औषधीय पौधों के संरक्षण और प्रसार को बढ़ावा दे रही है। ‘अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023’ के माध्यम से इन फसलों के प्रति जागरूकता और अनुसंधान को विशेष गति मिली है। इसके साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों की जैविक उपज के लिए विशेष FPO, मार्केट लिंकेज और मंडियों में समर्पित स्थान विकसित किए जा रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद त्रिवेन्द्र सिंह रावत की राय
त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखंड और पूरे हिमालयी क्षेत्र की पारंपरिक फसलें केवल कृषि उत्पाद नहीं हैं….बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर, पोषण सुरक्षा और स्थानीय जैव-विविधता का आधार हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते इनका तेजी से गायब होना गंभीर चिंता का विषय है। संरक्षण, बीज बैंकिंग, प्रसंस्करण और विपणन सहायता को और सुदृढ़ करना समय की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि मिलेट, छद्म-अनाज और औषधीय फसलों को मुख्यधारा में लाने के लिए व्यापक कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए….ताकि पर्वतीय कृषि को नई दिशा और नए अवसर मिल सकें।

