नीलकंठ महादेव रोपवे प्रोजेक्ट को केंद्र से फॉरेस्ट क्लियरेंस, पर्यावरण के अनुकूल और प्रदूषण मुक्त
देहरादून(samvaad365): ऋषिकेश में प्रस्तावित नीलकंठ महादेव रोपवे प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) से मंजूरी मिल गई है। केंद्रीय मंजूरी मिलने के बाद परियोजना की कार्यदायी संस्था उत्तराखंड मेट्रो कॉरपोरेशन ने आगे की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी कर ली है। हालांकि, कार्यदायी संस्था को अभी औपचारिक पत्राचार की प्रतीक्षा है, जो आने वाले 15 से 20 दिन में पूरा होगा। इसके बाद ही परियोजना की धरातल पर निर्माण गतिविधियां शुरू की जाएंगी।
उत्तराखंड स्टेट कैबिनेट से पहले ही प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिल चुकी है। केंद्र से वन्यजीव बोर्ड की मंजूरी मिलने के साथ अब नीलकंठ महादेव रोपवे प्रोजेक्ट की सभी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं। कार्यदायी एजेंसी का कहना है कि जल्द ही यह प्रोजेक्ट धरातल पर दिखाई देगा।
प्रोजेक्ट की पृष्ठभूमि
नीलकंठ रोपवे प्रोजेक्ट की शुरुआत 11 जून 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई UMTA (Unified Metropolitan Transport Authority) की बैठक में प्रस्तावित फिजिबिलिटी रिपोर्ट को मंजूरी मिलने से हुई थी। इसके बाद भारतीय पोर्ट रेल एवं रोपवे कॉरपोरेशन लिमिटेड के साथ MOU कर फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार की गई। उत्तराखंड कैबिनेट ने इस प्रोजेक्ट को 9 मई 2023 को मंजूरी दी थी। इसके बाद इसे फॉरेस्ट क्लियरेंस के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया था, जो अब मिल चुकी है।
प्रोजेक्ट की डिटेल्स
रोपवे की शुरुआत ऋषिकेश बस अड्डे से होगी।
इसमें केवल दो स्टेशन होंगे: पहला त्रिवेणी घाट, दूसरा नीलकंठ महादेव मंदिर।
त्रिवेणी घाट से नीलकंठ महादेव तक की क्षैतिज दूरी 4.1 किलोमीटर और ऊँचाई में अंतर 614 मीटर है।
प्रोजेक्ट में लगभग 21 टावर लगाए जाएंगे।
इस रोपवे के निर्माण और संचालन से न केवल ऋषिकेश शहर से नीलकंठ महादेव की सड़कों पर ट्रैफिक दबाव कम होगा, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी खुलेंगे।
पर्यावरण और पर्यटन पर प्रभाव
नीलकंठ महादेव रोपवे एक सस्टेनेबल और प्रदूषण मुक्त ट्रांसपोर्ट सिस्टम के रूप में तैयार किया जा रहा है। रोपवे से श्रद्धालुओं को क्षेत्र की प्राकृतिक और भौगोलिक सुंदरता का मनोरम दृश्य देखने को मिलेगा। प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद, नीलकंठ महादेव की कठिन चढ़ाई, जो बच्चों, वृद्धों और विकलांगों के लिए चुनौतीपूर्ण थी, अब आसान हो जाएगी। इससे उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और ऋषिकेश का नाम विश्व मानचित्र पर और अधिक प्रभावी रूप से अंकित होगा।

