सीमांत ग्राम पंचायत गौंडार के ग्रामीणों और द्वितीय केदार मदमहेश्वर धाम जाने वाले तीर्थ यात्रियों की जिंदगी एक साल से बिजली के तारों पर अटकी है शासन-प्रशासन की अनदेखी के कारण ग्रामीण और तीर्थ यात्री एक वर्ष से बिजली के तारों पर निर्भर लकड़ी के अस्थायी पुल से आवाजाही करने के लिए विवश हैं।
भले ही केंद्र और प्रदेश सरकार सीमांत गांवों के चहुंमुखी विकास के लाख दावे करती हो, लेकिन एक साल बाद भी शासन-प्रशासन के हुक्मरानों ने गौंडार गांव के ग्रामीणों की सुध नहीं ली है। जिससे ग्रामीण अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वोट के समय ही सरकार के नुमाइंदे को सीमांत गांवों की याद आती है और वोट के बाद पांच सालों के लिए भूल जाते हैं।
14 अगस्त 2024 को मोरखड़ा नदी के जल स्तर में भारी वृद्धि होने से मधु गंगा में दशकों पुराना बना लोहे का गार्डर पुल नदी में समा गया था। जिला प्रशासन और आपदा प्रबंधन के सहयोग से मदमहेश्वर धाम में फंसे 500 से अधिक तीर्थ यात्रियों और ग्रामीणों का हेलीकॉप्टर से रेस्क्यू कर रांसी गांव पहुंचाया गया था, कुछ समय व्यतीत होने के बाद लोक निर्माण विभाग और ग्रामीणों के सहयोग से मोरखड़ा नदी पर लकड़ी का अस्थायी पुल बनाकर आवाजाही शुरू तो की गई, मगर इस वर्ष 26 जुलाई को फिर मोरखड़ा नदी के उफान में आने के कारण अस्थायी पुल भी नदी में समा गया था। इस दौरान डीएम डॉ. सौरभ गहरवार के कुशल नेतृत्व में मदमहेश्वर धाम में फंसे 106 तीर्थ यात्रियों का हेलीकॉप्टर से सफल रेस्क्यू कर रांसी गांव पहुंचाया गया था।
दो अगस्त को लोक निर्माण विभाग और ग्रामीणों के सहयोग से दोबारा मोरखड़ा नदी पर बिजली के खंभों और लकड़ी के सहयोग से अस्थायी पुल बनाकर आवाजाही शुरू तो हो गई। लेकिन अस्थायी पुल का अधिक भार बिजली के तारों और पेड़ों पर होने से ग्रामीण और तीर्थ यात्री जान हथेली पर रखकर आवाजाही करने के लिए विवश हैं। एक साल से अधिक समय बीते जाने के बाद भी मोरखड़ा नदी पर स्थायी पुल का निर्माण न होने से मदमहेश्वर घाटी का तीर्थाटन पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हुआ है।