
उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बीच हाईकोर्ट के एक आदेश ने प्रत्याशियों की रणनीति को पूरी तरह से बदल दिया है। पंचायत मतदाता सूची से जुड़े एक सर्कुलर पर न्यायालय द्वारा लगाई गई रोक के बाद वे मतदाता अब पंचायत चुनाव में हिस्सा नहीं ले पाएंगे जिनके नाम शहरी निकायों की सूची में दर्ज हैं। इससे प्रत्याशियों का पूरा चुनावी गणित बिगड़ गया है।
अब तक पंचायत चुनाव में प्रत्याशी अक्सर शहरी क्षेत्रों में रहने वाले अपने रिश्तेदारों, समर्थकों या पूर्व ग्रामीण मतदाताओं को गांव लाकर वोट डलवाते थे। कई मतदाता भी अपने गांव आकर रिश्तों के लिहाज से या सामाजिक दायित्व समझकर वोट डालते थे। लेकिन अब, पंचायती राज अधिनियम के अनुसार, दोहरी मतदाता सूची में नाम रखने वाले व्यक्ति को पंचायत की मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट कर दिया है कि अगर किसी व्यक्ति का नाम निकाय की मतदाता सूची में है तो वह पंचायत चुनाव में वोट नहीं डाल सकता और ना ही चुनाव लड़ सकता है। इससे वे सभी प्रत्याशी मुश्किल में आ गए हैं जिनकी जीत की उम्मीद ऐसे ही शहरी-ग्रामीण मतदाताओं पर टिकी थी।
इस रोक से मतदाताओं को गांव लाना अब मुश्किल हो गया है। प्रत्याशी बार-बार समझा रहे हैं, संपर्क कर रहे हैं, लेकिन अब कानूनी अड़चन के चलते वे अपने पारंपरिक वोट बैंक को सक्रिय नहीं कर पा रहे हैं। इससे गांवों में चुनावी समीकरण तेजी से बदल सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदेश पंचायत चुनावों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम है, लेकिन इसका तात्कालिक असर प्रत्याशियों की चुनावी रणनीति पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। आगामी चरणों में यह स्थिति और अधिक जटिल हो सकती है।