विधानसभा के अफसर विधानभवन के पुनर्निर्माण कार्यों में बनाई गई शौर्य दीवार पर राज्य के दो बलिदानी आंदोलनकारियों की तस्वीरें लगाना भूल गया। खटीमा गोलीकांड के इन शहीदों के पोट्रेट न होने पर उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच ने नाराजगी जताई है।
पिछले कई माह से देहरादून स्थित विधानभवन में पुनर्निर्माण कार्य चल रहे हैं। साज-सज्जा के बीच सबकी निगाहें भवन के प्रवेश द्वार पर बनी खूबसूरत शौर्य दीवार पर टिक रही हैं। यहां राज्य आंदोलन में अपनी जान गंवाने वाले बलिदानियों की पोट्रेट लगाई गई हैं। इनमें खटीमा गोलीकांड के बलिदानियों की तस्वीरें भी शामिल हैं। खटीमा गोलीकांड के सात में से पांच बलिदानियों की तस्वीरें तो यहां लगी हैं और दो को भुला दिया गया।
शौर्य दीवार पर खटीमा गोलीकांड में बलिदान भगवान सिंह सिरौला, धर्मानंद भट्ट, प्रताप सिंह, गोपीचंद और परमजीत सिंह की तस्वीरें तो लगी हैं लेकिन रामपाल और सलीम अहमद की तस्वीरें नहीं हैं। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच ने इस पर नाराजगी जताई है। मंच के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप कुकरेती का कहना है कि तमाम दफ्तरों में पार्टी के बड़े नेताओं की तस्वीरें तो आसानी से मिल जाएंगी लेकिन राज्य आंदोलन के बलिदानियों को लेकर 24 साल बाद भी रवैया नहीं बदल सका। न तो हम उनके साथ न्याय कर पाए और न ही सरकारों ने उनकी पहचान को जनता के सामने सही तरीके से रखने का काम किया है। उन्होंने कहा कि विधानसभा के अफसर अपनी भूल को सुधारें।
खटीमा गोलीकांड
एक सितंबर 1994 को अलग राज्य उत्तराखंड की मांग को लेकर खटीमा में हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर शांतिपूर्ण जुलूस निकालते हुए रामलीला मैदान में एकत्र हुए। वहां जनसभा के दौरान पुलिस की बर्बरता में आंदोलनकारी बलिदान और घायल हुए थे। इसी कांड के विरोध में मसूरी गोलीकांड हुआ था, जिसमें और आंदोलनकारी बलिदान हो गए थे। इन दो घटनाओं ने आग में घी का काम किया और आंदोलन ने एक बड़ा रूप ले लिया था।
हमने राज्य आंदोलन के बलिदानियों की याद में ये दीवार बनाई है। खटीमा गोलीकांड के दो बलिदानियों की तस्वीर न लगने का मामला संज्ञान में नहीं है। इसका परीक्षण कराया जाएगा। – हेम पंत, सचिव, विधानसभा