
उत्तराखंड की पहाड़ियां प्राकृतिक आपदाओं के खतरे से लगातार जूझ रही हैं। आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों के एक ताजा शोध ने एक बार फिर इस आशंका को और पुख्ता कर दिया है कि राज्य में भूस्खलन से बने झीलें सबसे बड़ा खतरा बनकर सामने आ रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब भूस्खलन किसी नदी के बहाव को रोक देता है, तो वहां पानी जमा होकर झील का रूप ले लेता है। यह झील देखने में शांत लगती है, लेकिन इसके टूटने पर “भूस्खलन झील विस्फोट बाढ़” जैसी भीषण आपदा जन्म लेती है।
अध्ययन के मुताबिक, 1857 से 2018 के बीच उत्तराखंड में 23 भूस्खलन झीलों का निर्माण और टूटने की घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें से कई घटनाओं ने निचले इलाकों में भीषण तबाही मचाई। सबसे चर्चित उदाहरण 1893 में चमोली जिले में बनी गोहना ताल है, जो 76 साल बाद 1970 में टूटी और हरिद्वार तक बाढ़ का कारण बनी। वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि ऐसी झीलें अधिकतर मानसून के महीनों में बनती हैं, जब लगातार बारिश भूस्खलन को तेज करती है।
शोध में सामने आया है कि 28 प्रतिशत घटनाएं मलबे के भूस्खलन, 24 प्रतिशत पत्थरों के गिरने और 20 प्रतिशत मलबे के बहाव से जुड़ी रही हैं। चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिले सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र माने गए हैं। संकरी घाटियां, कमजोर चट्टानें और भूकंपीय गतिविधियां इस खतरे को और बढ़ा देती हैं।
इतिहास बताता है कि केवल पिछले डेढ़-दो सौ सालों में ही नहीं, बल्कि 5,000 से 14,000 साल पहले भी अलकनंदा और धौलीगंगा घाटियों में ऐसी कई भूस्खलन झीलें बनी थीं। वैज्ञानिकों ने इनकी पहचान आधुनिक तकनीकों जैसे ओएसएल डेटिंग, पराग विश्लेषण और भू-रासायनिक परीक्षणों से की है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन ने खतरे को और बढ़ा दिया है। पहाड़ों में बारिश की तीव्रता और बादल फटने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इसका सीधा असर भूस्खलनों पर पड़ रहा है। साथ ही, राज्य में चल रही सड़क, सुरंग और जल विद्युत परियोजनाएं भी जोखिम को दोगुना कर रही हैं।
ताजा घटनाओं में स्यानाचट्टी और धराली जैसे क्षेत्रों में भूस्खलन झीलें बनने और टूटने की स्थिति देखी जा रही है। इन घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में उत्तराखंड को और भयावह आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि आपदा प्रबंधन के साथ-साथ वैज्ञानिक मॉनिटरिंग, भूस्खलन मानचित्रण और सुरक्षित विकास कार्यों पर ध्यान देना होगा। तभी राज्य को भूस्खलन से बनी झीलों के खतरे से बचाया जा सकता है।