
उत्तराखंड एक बार फिर भूकंप के गंभीर खतरे की जद में आ गया है। भूगर्भीय गतिविधियों और बढ़ते टेक्टोनिक तनाव को देखते हुए देशभर के भूवैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि हिमालयी क्षेत्र, विशेषकर उत्तराखंड में किसी भी समय 7.0 तीव्रता तक का बड़ा भूकंप आ सकता है। हाल ही में देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और एफआरआई में वैज्ञानिकों की दो अहम बैठकें हुईं, जहां “हिमालयन अर्थक्वेक” और “भूकंप जोखिम मूल्यांकन” पर गहन विचार-विमर्श किया गया।
भूकंप की चेतावनी और वैज्ञानिक आधार
विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तराखंड के अंदरूनी भू-भाग में बड़ी मात्रा में ऊर्जा जमा हो रही है, जो किसी भी समय मुक्त होकर विनाशकारी भूकंप में बदल सकती है। पिछले 6 महीनों में राज्य में 1.8 से 3.6 तीव्रता के कुल 22 भूकंप दर्ज किए गए, जिनका केंद्र चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ और बागेश्वर क्षेत्र रहा। ये छोटे झटके एक बड़ी आपदा का संकेत हो सकते हैं।
कहां कितना खतरा?
वाडिया के निदेशक डॉ. विनीत गहलोत ने बताया कि उत्तराखंड में टेक्टोनिक प्लेटों की गति धीमी होने के कारण “लॉकिंग” की स्थिति बन रही है, जिससे तनाव बढ़ रहा है। चट्टानों में दरारें पड़ने और भूजल भराव की प्रक्रिया बड़ी आपदा का कारण बन सकती है। उन्होंने कहा कि 1991 (उत्तरकाशी) और 1999 (चमोली) के बाद राज्य में कोई बड़ा भूकंप नहीं आया, जिससे यह आशंका और प्रबल हो गई है।
मैदान बनाम पहाड़: कहां ज्यादा असर?
वाडिया संस्थान में हुई चर्चा के अनुसार, एक ही तीव्रता का भूकंप पहाड़ी क्षेत्रों की तुलना में मैदानी क्षेत्रों में अधिक विनाशकारी हो सकता है। इसका कारण है मैदानी इलाकों की भूमि संरचना की भुरभुराहट।
देहरादून की जमीन की जांच शुरू
केंद्र सरकार ने देहरादून समेत कुछ शहरों का चयन जमीन की मजबूती के अध्ययन के लिए किया है, जिसे सीएसआईआर बेंगलुरु द्वारा अंजाम दिया जाएगा। अध्ययन में यह देखा जाएगा कि दून की जमीन किन चट्टानों से बनी है और उनकी मोटाई कितनी है।
अलर्ट सिस्टम सक्रिय
राज्य के 169 स्थानों पर भूकंपीय सेंसर लगाए गए हैं, जो 5.0 तीव्रता से अधिक का भूकंप आने से पहले 15 से 30 सेकेंड का अलर्ट दे सकते हैं। ‘भूदेव एप’ के जरिए यह सूचना सीधे लोगों तक पहुंचेगी, जिससे जान बचाने में मदद मिल सकेगी।