हल्द्वानी की सड़कों पर गुरुवार को भारी जनसैलाब उमड़ा जब छह साल की मासूम लाडली हत्याकांड के आरोपी को सुप्रीम कोर्ट से बरी किए जाने के बाद लोगों ने गुस्सा और आक्रोश जाहिर किया। पिथौरागढ़ से उठे आंदोलन की आग हल्द्वानी तक पहुंची और शहर की गलियां “बेटी को इंसाफ दो” के नारों से गूंज उठीं।
बुद्धपार्क में आयोजित जनसभा के दौरान बच्ची के ताऊ ने भावुक संबोधन में कहा—“हमारी बेटी हंसी-खुशी घर से निकली थी, लेकिन हमें उसकी लाश मिली। उसके शरीर पर सिगरेट के दाग आज भी हमारे दिल को जला रहे हैं।” इन शब्दों ने लोगों की आंखें नम कर दीं और भीड़ एक स्वर में नारे लगाने लगी—“बेटी हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं।”
भीड़ बढ़ने पर पुलिस ने रोकने का प्रयास किया, जिससे धक्का-मुक्की की स्थिति बनी। कई महिलाएं सड़क पर धरने पर बैठ गईं, जबकि पहाड़ी आर्मी संयोजक हरीश रावत गेट फांदकर बाहर निकल गए। दबाव बढ़ने पर पुलिस ने गेट खोल दिया। इस बीच कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश मौके पर पहुंचे और परिवार को समर्थन दिया।
जनसभा में बच्ची के ताऊ ने सरकार पर तीखे सवाल खड़े किए। उन्होंने पूछा कि “क्या उत्तराखंड में कोई काबिल वकील नहीं है? हर बार बाहर से वकील क्यों लाने पड़ते हैं?” उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार आंदोलन तोड़ने की कोशिश कर रही है, जबकि जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका तुरंत दाखिल की जाए।
लोगों ने सिर्फ लाडली ही नहीं बल्कि अंकिता भंडारी और हल्द्वानी की योगा ट्रेनर मामले में भी न्याय की मांग उठाई। हाथों में “रिव्यू पिटीशन” और “महिला उत्पीड़न बंद करो” लिखे पोस्टर लिए लोग न्याय की लड़ाई के लिए प्रतिबद्ध नजर आए।
इस मामले ने लोगों के दिलों को झकझोर दिया है। लोकगायक गोविंद दिगारी ने कहा, “जिसे हाईकोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई, उसे सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया—यह जनता के लिए अस्वीकार्य है।” लोक कलाकार श्वेता माहरा ने भी साफ कहा, “हम पीछे नहीं हटेंगे, जरूरत पड़ी तो दिल्ली तक आंदोलन ले जाएंगे।”
नवंबर 2014 की इस दर्दनाक घटना ने पूरे कुमाऊं को दहला दिया था। छह साल की बच्ची को टॉफ़ी का लालच देकर अगवा किया गया और फिर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म कर हत्या कर दी गई। 2016 में हल्द्वानी की एडीजे कोर्ट ने मुख्य आरोपी अख्तर अली को फांसी की सजा सुनाई थी, मगर सुप्रीम कोर्ट से बरी होने के बाद अब न्याय की लड़ाई फिर से सड़कों पर पहुंच गई है।
