मसूरी से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को बड़ा लगाव था। उन्होंने मसूरी में प्रार्थना सभा आयोजित कर लोगों को अहिंसा का पाठ पढ़ाया था। लोगों को आजादी की लड़ाई में मजबूती से आगे आने के लिए प्रेरित किया था।
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि महात्मा गांधी सबसे पहले 1929 में मसूरी आए थे। 15 अक्तूबर 1929 को हरिद्वार में एक कार्यक्रम में शामिल होकर अगले दिन मसूरी पहुंचे थे। 16 अक्तूबर 1929 को बापू देहरादून में एक कार्यक्रम के बाद मसूरी पहुंचे थे। 18 अक्तूबर को मसूरी पहुंचे महात्मा गांधी ने यूरोपीय नगर पालिका पार्षदों को संबोधित किया। 24 अक्तूबर तक मसूरी के हैप्पी वैली के पास बिड़ला हाउस में रहे और उस दौर के बड़े राष्ट्रीय नेताओं के साथ बैठक की। उसके बाद 28 मई 1946 को मसूरी का दौरा किया था और कुलड़ी स्थित सिल्वर्टन मैदान में जनसभा कर लोगों को अहिंसा का पाठ पढ़ाया। महात्मा गांधी ने मसूरी एंड दून गाइड बुक में मसूरी से दिखाई देनी वाले हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता का जिक्र किया था।
गोपाल भारद्वाज के मुताबिक 1946 में जब महात्मा गांधी बिड़ला हाउस में रुके थे, तब उनके पिता ऋषिराज भारद्वाज को लेने के लिए रिक्शा भेजा था। मसूरी प्रवास के दौरान स्थानीय लोगों ने महात्मा गांधी को चांदी की छड़ी और रिक्शा भेंट किया था। महात्मा गांधी ने स्थानीय लोगों से मिले उपहार की बोली लगाई और 800 रुपये में बेच दिए। उस धनराशि को खादी ग्रामोद्योग को दान कर दिया था।
शहर के लाइब्रेरी चौक पर महात्मा गांधी की प्रतिमा लगी है। इसके आसपास आवारा पशुओं का दिनभर जमावड़ा लगा रहता है। शहर का सबसे व्यस्त चौक होने पर यहां बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं। सैलानी दून वैली का खूबसूरत नजारे का लुत्फ उठाते हैं, लेकिन आवारा जानवरों की वजह से परेशानी झेलते हैं।