चतुर्थ केदार रुद्रनाथ मंदिर के कपाट आज बृहस्पतिवार को ब्रह्म मुहूर्त में शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। रुद्रनाथ जी की उत्सव विग्रह डोली अपने शीतकालीन स्थल गोपीनाथ मंदिर गोपेश्वर के लिए रवाना हो गई है। आज ही 18 किमी की पैदल दूरी तय कर देर शाम तक रुद्रनाथ भगवान अपने शीतकालीन प्रवास में विराजमान हो जाएंगे। रुद्रनाथ मंदिर के पुजारी वेद प्रकाश भट्ट ने विधि विधान से मंदिर को शीतकाल के लिए बंद किया। इस मौके पर सैकड़ो भक्तगण मौजूद रहे। वहीं द्वितीय केदार मध्यमेश्वर की कपट 20 नवंबर और तृतीय केदार तुंगनाथ मंदिर के कपाट 4 नवंबर को शीतकाल के लिए बंद हो जाएंगे ।
उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में रुद्रनाथ धाम स्थित है, जिसे चौथा केदार कहा जाता है। रुद्रनाथ में शिव के एकानन रूप यानी मुख की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत के समय में पांडवों के द्वारा किया गया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की पूजा नील कंठ रूप में की जाती है।
कहते हैं यहां शिव के बैल रुपी अवतार का मुख प्रकट हुआ था। इसलिए इस शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग के नाम से भी जाना जाता है। इस स्वयंभू शिवलिंग की आकृति मुख जैसी है जिसकी गर्दन टेढ़ी है। ये शिवलिंग एक प्राकृतिक शिवलिंग है जिसकी गहराई का आज तक पता नही लगाया जा सका है। मंदिर के आस-पास कई छोटे मंदिर भी स्थापित हैं जो पांचों पांडवों, माता कुंती और द्रौपदी को समर्पित हैं