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कुछ बेहतर करने की दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो परिस्थितियां विपरीत होने के बाद भी व्यक्ति अपनी मंजिल को हासिल कर लेता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है 17 वर्षीय टेबल टेनिस खिलाड़ी अर्पित ने। अर्पित के पास रैकेट खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, तब उनके पिता ने गोल्ड लोन लेकर बेटे को रैकेट दिलवाया और बेटे ने भी स्वर्ण पदक जीतकर पिता को सोना लौटाया।
चमोली जिले की सीमांत घाटी नीति से देहरादून पढ़ने आए अर्पित ने वेल्फील्ड स्कूल में दोस्त को टेबल टेनिस खेलता देखा तो पीआरडी में तैनात पिता प्रेम हिंदवाल के सामने अपनी इच्छा रखी तो उन्होंने भी बच्चे की रुचि देखकर हामी भर दी। बस यहीं से शुरू हुआ अर्पित का टेनिस की टेबल पर अपना हुनर दिखाने का सिलसिला। अर्पित ने स्कूल में एक सीनियर छात्र से 200 रुपये में पुराना रैकेट खरीदा।
कम समय में ही अर्पित ने अपनी प्रतिभा से हर किसी को चौंका दिया। अब खेल में आगे बढ़ने के लिए जरूरत थी अच्छे रैकेट और कोच की। पिता ने रिश्तेदारों से पैसे एकत्र कर 8000 रुपये का रैकेट तो ले लिया, लेकिन अब कोच के लिए 3000 रुपये महीना फीस जुटानी मुश्किल थी।
फिर प्रशिक्षक विपिन प्रिंस के पास गए तो उन्होंने एक माह के अभ्यास के बाद अर्पित को निशुल्क कोचिंग देने का निर्णय लिया। फिर आगे बढ़ने के लिए जरूरत थी 16000 रुपये के रैकेट की। फिर रैकेट खरीदने के लिए गोल्ड लोन लिया।
अर्पित ने भी उसी रैकेट से स्वर्ण पदक जीता, जो पिता ने गोल्ड लोन लेकर उसे दिलाया था। इसके अलावा कई प्रतियोगिताएं जीतीं और अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहे लेकिन इसी बीच उनका रैकेट खराब हो गया। एक बार फिर उनके सामने नए रैकेट को खरीदने की चुनौती थी। घर में रखा सोना पहले ही गिरवी था। इस बार सहायता के लिए नीति माणा घाटी जनजाति कल्याण समिति आगे आई और करीब 30 हजार की धनराशि एकत्रित की, जिससे नया रैकेट खरीदा गया।
राज्य के लिए पदक जरूर जीतूंगा : अर्पित
अर्पित तीनों चयन सत्र में सफल रहने के बाद पहली बार राष्ट्रीय खेल में हिस्सा ले रहे हैं। अंडर-19 की टेबल टेनिस स्पर्धा में भाग लेने के लिए अर्पित काफी उत्साही हैं। वह इसके लिए रोजाना सात से आठ घंटे अभ्यास कर रहे हैं। उन्हें पूरा विश्वास है कि वे राज्य के लिए पदक जरूर जीतेंगे।