
देहरादून में बुधवार को राजकीय शिक्षक संघ के सदस्यों ने मुख्यमंत्री आवास की ओर कूच किया, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच काफी देर तक तनावपूर्ण स्थिति रही। जब शिक्षकों को आगे जाने नहीं दिया गया, तो उन्होंने सुभाष रोड के पास एक स्कूल के समीप धरना दे दिया।
शिक्षक संघ का विरोध प्रधानाचार्यों की सीधी भर्ती प्रक्रिया और टीईटी अनिवार्यता को लेकर है। राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ ने शिक्षकों को टीईटी अनिवार्यता से मुक्त रखने की मांग की है। शिक्षक संघ के प्रांतीय तदर्थ समिति सदस्य गोविंद सिंह बोहरा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा और संगठन की चिंताओं को व्यक्त किया।
पत्र में कहा गया है कि प्रारंभिक शिक्षा में शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) लागू होने से पहले नियुक्त सभी शिक्षकों को टीईटी अनिवार्यता से मुक्त रखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से शिक्षकों की पदोन्नति और विभाग में सेवा पर असर पड़ा है, जिससे वे भारी मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। शिक्षक संघ ने सरकार से इस मामले में तत्काल कार्रवाई की मांग की है।
प्रदर्शन स्थल पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया। पुलिस ने सुरक्षा को देखते हुए शिक्षकों को आगे बढ़ने से रोका, जिससे कुछ समय के लिए तनावपूर्ण माहौल बन गया। ग्रामीणों और स्थानीय लोगों की मदद से स्थिति को नियंत्रण में रखा गया, और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने शिक्षकों और पुलिस के बीच बातचीत कर शांति बनाए रखने का प्रयास किया।
शिक्षक संघ ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगों पर सरकार उचित कार्रवाई नहीं करती है, तो भविष्य में और बड़े आंदोलन की योजना बनाई जा सकती है। उनके अनुसार, सरकार को शिक्षकों की मानसिक स्थिति और उनके भविष्य की सुरक्षा को देखते हुए तत्काल कदम उठाने होंगे।
इस दौरान प्रदर्शन में शामिल शिक्षक लगातार अपने हक और आरटीई अनिवार्यता से संबंधित परेशानियों पर जोर दे रहे थे। संगठन ने कहा कि उनके मुद्दों का समाधान न होने पर शिक्षक समुदाय में असंतोष और आंदोलन की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।
मुख्यमंत्री कार्यालय ने फिलहाल प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने का प्रयास किया है और आश्वासन दिया कि मामले को गंभीरता से देखा जाएगा। शिक्षक संघ का यह आंदोलन शिक्षा व्यवस्था और कर्मचारियों के अधिकारों को लेकर प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया है।
इस घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि शिक्षा क्षेत्र में नीतिगत बदलावों और नियुक्तियों को लेकर शिक्षक समुदाय में गहरी चिंता और असंतोष मौजूद है। सरकार और प्रशासन के लिए यह चुनौती बनी हुई है कि वे संतुलित तरीके से शिक्षकों की मांगों और शिक्षा प्रणाली की आवश्यकताओं के बीच समाधान निकालें।