
उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में जहां सीमित कृषि योग्य भूमि और कठिन भौगोलिक परिस्थितियाँ हैं, वहीं पशुपालन ग्रामीणों के लिए स्वरोजगार और आय का मजबूत जरिया बनकर उभरा है। केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के चलते अब यह क्षेत्र स्थानीय लोगों को आत्मनिर्भर बना रहा है।
हरिद्वार सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने संसद में पशुपालन को स्वरोजगार के रूप में बढ़ावा देने से जुड़े सवाल उठाए, जिसके लिखित उत्तर में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एस.पी. सिंह बघेल ने बताया कि केंद्र सरकार उत्तराखंड सहित पूरे देश में पशुपालन को आर्थिक सशक्तिकरण का माध्यम बनाने के लिए व्यापक योजनाओं को लागू कर रही है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय गोकुल मिशन, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम और पशुपालन अवसंरचना विकास निधि जैसी योजनाएं दुग्ध उत्पादन, नस्ल सुधार, पशु स्वास्थ्य सेवा, डेयरी प्रसंस्करण और रोजगार सृजन में अहम भूमिका निभा रही हैं।
हरिद्वार जिले में अब तक 1.56 लाख से अधिक कृत्रिम गर्भाधान कराए गए हैं। मैत्री योजना के तहत राज्य में 817 तकनीशियन तैयार किए गए हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में पशु प्रजनन और प्राथमिक उपचार की सेवा दे रहे हैं। हरिद्वार में एक उन्नत नस्ल वृद्धि फार्म भी स्वीकृत किया गया है।
राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम के अंतर्गत उत्तराखंड में 7504.26 लाख रुपये की लागत से दुग्ध अवसंरचना को सुदृढ़ किया जा रहा है। नाबार्ड की RIDF योजना के तहत नैनीताल में 1.50 लाख लीटर/दिन की क्षमता वाला आधुनिक संयंत्र और चंपावत में डेयरी संयंत्र विस्तार परियोजना को मंज़ूरी मिली है।
पशुपालन अवसंरचना विकास निधि के अंतर्गत 9.60 करोड़ रुपये की लागत वाली दो परियोजनाओं को स्वीकृति मिली है। वहीं, LHDCP कार्यक्रम के तहत राज्य में 1.63 करोड़ से अधिक टीकाकरण किए गए हैं, जिसमें हरिद्वार जिले में ही लाखों पशुओं को टीके लगे हैं। राज्य में 60 मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयाँ (MVU) काम कर रही हैं, जिनमें से 5 हरिद्वार में हैं और ये ग्रामीण इलाकों तक सेवाएं पहुँचा रही हैं। सांसद रावत ने कहा कि इन योजनाओं से उत्तराखंड के गांवों में डेयरी क्रांति की नींव रखी जा रही है।