
जंगली आग अनियंत्रित आग है जो जंगलों, घास के मैदानों में जलती है। वे प्राकृतिक कारणों, जैसे बिजली गिरने, या मानवीय गतिविधियों, जैसे कृषि जलाने और भूमि साफ़ करने के कारण होती हैं। पिछले साल वन महकमे ने जंगल की आग से वनों को बचाने के लिए दो लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में नियंत्रित फुकान किया। इसके बावजूद प्रदेश के वन जलते रहते है। ऐसे में वन महकमे का किया गया नियंत्रित कंट्रोल बर्निंग सवालों में है।
यही नहीं जंगल की आग के नियंत्रण करने लिए एक बड़ी रकम विभाग को तब जारी की गई, जब फायर सीजन खत्म हो रहा था।
भारत में जंगल की आग के आँकड़ों की बात करे तो ओडिशा में 2023 में 20 से 27 अप्रैल के बीच 1,499 की तुलना में 4,237 जंगल की आग दर्ज की गई। इसी तरह, छत्तीसगढ़ में पिछले साल 757 आग की घटनाएं दर्ज की गईं है भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल की बात करें तो जंगल को आग से बचाने के लिए 25 वन प्रभागों में नियंत्रित फुकान का काम किया गया, इसमें वन विभाग 201253.94 हेक्टेयर में नियंत्रित फुकान किया था। इसके बाद भी 1273 घटनाएं हुई।
उत्तराखंड में जंगल की आग का मुख्य कारण लगातार शुष्क मौसम और जंगलो में नमी का कारण होती है। वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई, 2019) के अनुसार , 95% वन आग के लिए मानवीय गतिविधियाँ जिम्मेदार हैं। जैसे मानव- प्रेरित कारण है चरवाहो द्वारा सूखी घास में आग लगाना, कटाई और जलाकर खेती करना, बिना देखरेख के कैम्प फायर करना।
हालांकि इस बार पहले से अधिक इंतजाम होने का दावा किया जा रहा है। वन विभाग जंगल से आग से बचाव के लिए फायर लाइन की सफाई, कंट्रोल बर्निंग, जागरूकता अभियान चलाने जैसे प्रयास किया है।
15 फरवरी से 15 जून तक फायर सीजन होता है। वन विभाग ने वनाग्नि नियंत्रण के लिए बजट जारी करने के कई आदेश दिए है। इसमें बड़ी रकम मई और जून में जारी हुई। पिछले साल में मार्च में पहले नौ लाख की राशि जारी हुई। जबकि एक करोड़ दस लाख की राशि जारी करने का आदेश 20 जून को किया गया। वहीं, कैंपा से भी 20 मई को सवा पांच करोड़ से अधिक की राशि जारी की गई।