
गैरसैंण के भराड़ीसैंण विधानसभा में आयोजित उत्तराखंड का चार दिवसीय मानसून सत्र विपक्षी हंगामे की भेंट चढ़ गया। तय कार्यक्रम के अनुसार यह सत्र 18 से 21 अगस्त तक चलना था, लेकिन भारी शोर-शराबे और लगातार टकराव के बीच इसे महज दो दिन में ही समाप्त करना पड़ा। हैरानी की बात यह रही कि पूरे दो दिनों में सदन की कार्यवाही केवल 2 घंटे 40 मिनट ही चल सकी।
पहले दिन हालात इतने खराब रहे कि कार्यवाही को आठ बार स्थगित करना पड़ा और सदन सिर्फ एक घंटा 45 मिनट चला। विपक्ष ने सरकार को प्रशासनिक फैसलों, अधिकारियों के तबादलों और कानून-व्यवस्था से जुड़े मामलों को लेकर घेरा। कांग्रेस विधायकों ने नारेबाजी और वेल में आकर विरोध जताया।
दूसरे दिन भी हंगामे का सिलसिला जारी रहा, लेकिन इसी शोरगुल के बीच सरकार ने नौ अहम विधेयक पारित करा लिए। इनमें धर्मांतरण कानून संशोधन, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) संशोधन और अल्पसंख्यक आयोग गठन से जुड़ा विधेयक प्रमुख रहे। धर्मांतरण कानून को और सख्त बनाते हुए अब डिजिटल माध्यम से जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर भी कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। वहीं, यूसीसी संशोधन में लिव-इन-रिलेशनशिप से जुड़े नए प्रावधान जोड़े गए।
इसके साथ ही 5315 करोड़ रुपये का अनुपूरक बजट भी सदन में पारित कर दिया गया। सरकार का दावा है कि यह बजट राज्य के विकास कार्यों, कल्याणकारी योजनाओं और प्रशासनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है। हालांकि विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने बजट पर गंभीर चर्चा से बचने के लिए जल्दबाजी दिखाई।
विधानसभा अध्यक्ष ने स्थिति को संभालने की कई बार कोशिश की, लेकिन कांग्रेस विधायकों के विरोध, नारेबाजी और कागज फाड़ने जैसी घटनाओं ने माहौल को और तनावपूर्ण बना दिया। अंततः विधानसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार का मानसून सत्र विधायी दृष्टि से महत्वपूर्ण तो रहा, क्योंकि बड़े विधेयक और बजट पारित हो गए, लेकिन विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच टकराव ने लोकतांत्रिक परंपराओं और बहस की गरिमा को चोट पहुंचाई। जनता से जुड़े कई गंभीर मुद्दे चर्चा से बाहर रह गए।